भारत देश महान है
खोज कहाँ ईमान है
मौके पर लूटा शासक ने
एक सुमन नादान है
दशक दशक का पाप है
घर घर मे संताप है
सेवक ही शोषक बन बैठा
यही सुमन अभिशाप है
ऊबड़-खाबड़, समतल है
जमीं, गरम औ शीतल है
सुमन जहाँ सोने की आमद
वहीं निकलता पीतल है
हवा ये कैसी आई है
बैरी, भाई का भाई है
सुमन मसीहा जिसको चुनते
बनता वही कसाई है
देश भी आगे निकल रहा है
धीरे धीरे सम्भल रहा है
सुमन चेतना जगी लोग में
हवा का रुख भी बदल रहा है
खोज कहाँ ईमान है
मौके पर लूटा शासक ने
एक सुमन नादान है
दशक दशक का पाप है
घर घर मे संताप है
सेवक ही शोषक बन बैठा
यही सुमन अभिशाप है
ऊबड़-खाबड़, समतल है
जमीं, गरम औ शीतल है
सुमन जहाँ सोने की आमद
वहीं निकलता पीतल है
हवा ये कैसी आई है
बैरी, भाई का भाई है
सुमन मसीहा जिसको चुनते
बनता वही कसाई है
देश भी आगे निकल रहा है
धीरे धीरे सम्भल रहा है
सुमन चेतना जगी लोग में
हवा का रुख भी बदल रहा है
1 comment:
सुन्दर मुक्तक !
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