Thursday, December 26, 2013

हवा ये कैसी आई है

भारत देश महान है
खोज कहाँ ईमान है
मौके पर लूटा शासक ने
एक सुमन नादान है

दशक दशक का पाप है
घर घर मे संताप है
सेवक ही शोषक बन बैठा
यही सुमन अभिशाप है

ऊबड़-खाबड़, समतल है
जमीं, गरम औ शीतल है
सुमन जहाँ सोने की आमद
वहीं निकलता पीतल है

हवा ये कैसी आई है
बैरी, भाई का भाई है
सुमन मसीहा जिसको चुनते
बनता वही कसाई है

देश भी आगे निकल रहा है
धीरे धीरे सम्भल रहा है
सुमन चेतना जगी लोग में
हवा का रुख भी बदल रहा है
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