Saturday, January 25, 2014

रोते कितने लोग यहाँ

इस माटी का कण कण पावन।
नदियाँ पर्वत लगे सुहावन।
मिहनत करते लोग मिलेंगे, चलता रहता योग यहाँ।
नीति गलत दिल्ली की होती रोते कितने लोग यहाँ।।

ये पंजाबी वो बंगाली।
मैं बिहार से तू मद्रासी।
जात-पात में बँटे हैं ऐसे,
कहाँ खो गया भारतवासी।
हरित धरा और खनिज सम्पदा का अनुपम संयोग यहाँ।
नीति गलत दिल्ली की होती रोते कितने लोग यहाँ।।

मैं अच्छा हूँ गलत है दूजा।
मैं आया तो अबके तू जा।
परम्परा कुछ ऐसी यारो,
बुरे लोग की होती पूजा।
ऐसा लगता घर घर फैला ये संक्रामक रोग यहाँ।
नीति गलत दिल्ली की होती रोते कितने लोग यहाँ।।

सच्चाई का व्रत-धारण हो।
एक नियम का निर्धारण हो।
अवसर सबको मिले बराबर,
नहीं अलग से आरक्षण हो।
काश! सुमन सब मिल, कर पाते सभी सुखों का भोग यहाँ
नीति गलत दिल्ली की होती रोते कितने लोग यहाँ।।

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जय भारत।

Rajendra kumar said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ६५वें गणतंत्र दिवस कि हार्दिक शुभकामनायें !

vandana gupta said...

सुन्दर प्रस्तुति …………भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हो तो पहले खुद को बदलो
अपने धर्म ईमान की इक कसम लो
रिश्वत ना देने ना लेने की इक पहल करो
सारे जहान में छवि फिर बदल जायेगी
हिन्दुस्तान की तकदीर निखर जायेगी
किस्मत तुम्हारी भी संवर जायेगी
हर थाली में रोटी नज़र आएगी
हर मकान पर इक छत नज़र आएगी
बस इक पहल तुम स्वयं से करके तो देखो
जब हर चेहरे पर खुशियों का कँवल खिल जाएगा
हर आँगन सुरक्षित जब नज़र आएगा
बेटियों बहनों का सम्मान जब सुरक्षित हो जायेगा
फिर गणतंत्र दिवस वास्तव में मन जाएगा

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ग़ज़ब का लिखा है

संगीता-जीवन सफ़र said...

बहुत सुन्दर

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