नींद तुम्हारी आँखों में पर मैंने सपना देखा है
अपनों से ज्यादा गैरों में मैंने अपना देखा है
किसे नहीं लगती है यारो धूप सुहानी जाड़े की
बर्फीले मौसम में टूटे दिल का तपना देखा है
बड़े लोग की सर्दी - खाँसी अखबारों की सुर्खी में
फिक्र नहीं जनहित की ऐसी खबर का छपना देखा है
धर्म-कर्म पाखण्ड बताकर जो मंचों से बतियाते
उनके घर में अक्सर यारो मन्त्र का जपना देखा है
चुपके से घायल करते फिर अपना बनकर सहलाते
हाल सुमन का जहाँ पे ऐसा वहीं तड़पना देखा है
अपनों से ज्यादा गैरों में मैंने अपना देखा है
किसे नहीं लगती है यारो धूप सुहानी जाड़े की
बर्फीले मौसम में टूटे दिल का तपना देखा है
बड़े लोग की सर्दी - खाँसी अखबारों की सुर्खी में
फिक्र नहीं जनहित की ऐसी खबर का छपना देखा है
धर्म-कर्म पाखण्ड बताकर जो मंचों से बतियाते
उनके घर में अक्सर यारो मन्त्र का जपना देखा है
चुपके से घायल करते फिर अपना बनकर सहलाते
हाल सुमन का जहाँ पे ऐसा वहीं तड़पना देखा है
5 comments:
अपनों से ज्यादा गैरों में मैंने अपना देखा है
बहुत खूब कहा है।
बहुत खरी बातें कह डाली
वाह
बर्फीले मौसम में टूटे दिल का तपना देखा है।
बहुत सुन्दर
किसे नहीं लगती है यारो धूप सुहानी जाड़े की
बर्फीले मौसम में टूटे दिल का तपना देखा है
बहुत सुन्दर भाव
अपनों गैरों की भेद जिया ही खोले है।
लहूलुहान लहू जब करता,
भाव भरा दिल किसी का बोले है ।।
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