इक हिसाब है मेरी जिन्दगी सालों साल महीने की
लेकिन वे दिन याद सभी जब रोटी मिली पसीने की
लोग हजारों आसपास में कुछ अच्छे और बुरे अधिक
इन लोगों में ही तलाश है नित नित नए नगीने की
नेकी करने वाले अक्सर बैठे गुमशुम कोने में
समाचार में तस्वीरों संग चर्चा आज कमीने की
आज जिन्दगी भँवर बनी जब सबको पार उतरना है
मगर फिक्र है कहाँ किसी को हालत देख सफीने की
सच्चाई का साथ ना छोड़ा, न छोड़ा ईमान कभी
फिर भी कहते लोग सुमन को करता नहीं करीने की
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-06-2014) को "बरस जाओ अब बादल राजा" (चर्चा मंच-1644) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
लाजवाब शेर...मज़ा आ गया...
पसीने की रोटी मिले तो चैन की नींद आती है।
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