जो हालात सामने जब जब खुशी खुशी मंजूर हुए
वक्त से टकराने की आदत कभी नहीं मजबूर हुए
आँखें नम होतीं हैं अक्सर कोमल क्षण की यादों में
परिचय भी ना सुमन हुआ था मगर पिता से दूर हुए
वे बच्चे बड़भागी होते जिनके सँग में रहते बाप
जीना मरना संतानों हित और बहुत कुछ सहते बाप
अब के जो हालात सामने हैरत में है देख सुमन
जीना मरना संतानों हित और बहुत कुछ सहते बाप
अब के जो हालात सामने हैरत में है देख सुमन
प्रायः लोग जरूरत पर क्यूँ गदहे को भी कहते बाप
मातु पिता इक वैचारिक छत, उसके नीचे खड़ा हुआ हूँ
स्नेह-समर्थन, अनुशासन संग त्याग सीखकर बड़ा हुआ हूँ
सबके सँग जीने मरने की ललक सुमन में है बाकी
सदा बुराई से लड़ने की अपनी जिद्द पर अड़ा हुआ हूँ
स्नेह-समर्थन, अनुशासन संग त्याग सीखकर बड़ा हुआ हूँ
सबके सँग जीने मरने की ललक सुमन में है बाकी
सदा बुराई से लड़ने की अपनी जिद्द पर अड़ा हुआ हूँ
4 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सुन्दर भाव!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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