Tuesday, October 7, 2014

आसमान है साजिश में

शिक्षा इक व्यापार बना तो आज ज्ञान है साजिश में
विश्वासों का संकट ऐसा देख जान है साजिश में
ऐसे जब हालात सुमन हैं खाक बचेगी ये दुनिया
धरती को बाँटा पहले अब आसमान है साजिश में

जन को जन से जोड़ें कैसे, यह विचार करना होगा
एक मात्र हथियार एकता, रोज धार करना होगा
सुमन सजग  प्रहरी बन गर तुम दिल्ली को न देखोगे
अच्छे दिन आने का सब दिन, इन्तजार करना होगा

यादों में कितने धन वाले, इतिहासों का दर्पण देख
याद वही, जो पाकर जग से, करता सबको अर्पण देख
पागल जैसा अरज सुमन तू, कोई नाम नहीं लेगा
सदियों तक जो सबके दिल में, उनका त्याग-समर्पण देख

दूर भले प्रेमी के तन हों अक्सर मन मिल जाता यार
जैसे दूर तलक देखो तो धरा-गगन मिल जाता यार
जीवन में जिम्मेवारी का वजन उठाकर जीते जो
उनके ह्ल्के शब्दों में भी और वजन मिल जाता यार

जो भी है अज्ञात जगत में भूत, भाग्य, भगवान वही
खो जाना निज-सच्चाई में कहलाता है ध्यान वही
स्वाभिमान की बातें अच्छी खुद को आँको रोज सुमन
दिखलाना क्यों खुद को ज्यादा बन जाता अभिमान वही

1 comment:

Rohitas Ghorela said...

स्टिक और सुन्दर रचना


कृपया मेरे ब्लॉग तक भी आयें, अच्छा लगे तो ज्वाइन भी कीजिये सब थे उसकी मौत पर (ग़जल 2)

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