Wednesday, November 5, 2014

छूरी बिना कसाई है

रिश्ते में वह भाई है
छूरी बिना कसाई है

घर मेरे आलम गम का
उनके घर शहनाई है

कहते मेरी खुशियों को
सौतन बनकर आई है

समझ न पाया हूँ अबतक
क्यों मुझसे रानाई है

कहते मेरी बातों पर
सुमन बड़ा सौदाई है 

1 comment:

विनय प्रजापति said...

बहुत सुंदर कृति

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