कैसे कह दूँ प्यार नहीं है
बंधन भी स्वीकार नहीं है
दिल में तेरी यादें हरदम
मन पर ही अधिकार नहीं है
कुछ खोया तो पाया भी कुछ
प्यार कभी बेकार नहीं है
प्यार सलामत अगर जिन्दगी
सूना ये संसार नहीं है
आँखों आँखों में महसूसो
प्यार कभी व्यापार नहीं है
यह मेरा है सब कहते पर
अपना तो घर द्वार नहीं है
सुमन मुहब्बत और फकीरी
सम तो है शमसार नहीं है
बंधन भी स्वीकार नहीं है
दिल में तेरी यादें हरदम
मन पर ही अधिकार नहीं है
कुछ खोया तो पाया भी कुछ
प्यार कभी बेकार नहीं है
प्यार सलामत अगर जिन्दगी
सूना ये संसार नहीं है
आँखों आँखों में महसूसो
प्यार कभी व्यापार नहीं है
यह मेरा है सब कहते पर
अपना तो घर द्वार नहीं है
सुमन मुहब्बत और फकीरी
सम तो है शमसार नहीं है
4 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (19-12-2014) को "नई तामीर है मेरी ग़ज़ल" (चर्चा-1832) पर भी होगी।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
सुन्दर अभिव्यक्ति!
गहन अनुभूतियों की सुंदर अभिव्यक्ति , कमाल है !
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