Friday, January 16, 2015

मजा लूटता और

नया साल कैसे मने, सब के सब हलकान।
बाँट रहे शुभकामना, ले नकली मुस्कान।।

ले आया नव वर्ष यह, खुशियों की सौगात।
ठिठुर रहे सब ठण्ढ से, और शुरू बरसात।।

दुनिया सूरज से बनी, हर पल सूरज साथ।
सूरज ढँकने के लिए, उठा सुमन मत हाथ।।

गलती अपनी देखना, बहुत कठिन है बात।
दिखलाने में व्यस्त सब, दूजे की औकात।।

लेखन है इक साधना, गिन के रचनाकार।
सजा रहे नित शेष जो, साहित्यिक बाजार।।

आज सभी चालाक हैं, देख सुमन कर गौर।
मिहनतकश भूखा मरे, मजा लूटता और।।

4 comments:

संजय भास्‍कर said...

आज सभी चालाक हैं, देख सुमन कर गौर।
मिहनतकश भूखा मरे, मजा लूटता और।।

......मैं निशब्द हूँ ,अपने मन के भाव देख कर !!

खट्टी-मीठी यादों से भरे साल के गुजरने पर दुख तो होता है पर नया साल कई उमंग और उत्साह के साथ दस्तक देगा ऐसी उम्मीद है। नवर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
नई पोस्ट ….शब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-01-2015) को "सियासत क्यों जीती?" (चर्चा - 1862) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

प्रतुल वशिष्ठ said...

झूठी हो शुभ कामना, नकली हो मुस्कान।

लेने में क्या हर्ज है, क्यों चिंतित श्रीमान। :)


@ आपके दोहे पसंद आये।

हिमांशु पाण्‍डेय said...

बहुत बढि़या

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