है पानी में दूध या, मिला दूध में नीर।
बसा कौन है प्राण में, किसका व्यक्त शरीर?
आग जहाँ पर है धुआँ, अक्सर कहते लोग।
धुआँ बिना भी आग तब, दिल से दिल का रोग।।
लोग चाहते किस तरह, खुशियाँ मिले अपार।
हँसी खोजने के लिए, घूम गली-बाजार।।
आज तलक जो भी कहा, खुशी खुशी मंजूर।
जो मेरे आदर्श थे, वो करनी से दूर।।
अधिग्रहण हो भूमि का, इक प्रस्ताव नवीन।
चेत कृषक सरकार अब, छीने खेत जमीन।।
बी० पी० एल० को भूलकर, आई० पी० एल० की बात।
रोटी पर आफत, उधर, पैसों की बरसात।।
भगवन के घर देर पर, वहाँ नहीं अंधेर।
देर लगे अंधेर सा, फिर क्यूँ करते देर??
खुशियों सूरत पे नहीं, कल जैसा वो आज।
कई सुमन अक्सर मिले, दुनिया से नाराज।।
बसा कौन है प्राण में, किसका व्यक्त शरीर?
आग जहाँ पर है धुआँ, अक्सर कहते लोग।
धुआँ बिना भी आग तब, दिल से दिल का रोग।।
लोग चाहते किस तरह, खुशियाँ मिले अपार।
हँसी खोजने के लिए, घूम गली-बाजार।।
आज तलक जो भी कहा, खुशी खुशी मंजूर।
जो मेरे आदर्श थे, वो करनी से दूर।।
अधिग्रहण हो भूमि का, इक प्रस्ताव नवीन।
चेत कृषक सरकार अब, छीने खेत जमीन।।
बी० पी० एल० को भूलकर, आई० पी० एल० की बात।
रोटी पर आफत, उधर, पैसों की बरसात।।
भगवन के घर देर पर, वहाँ नहीं अंधेर।
देर लगे अंधेर सा, फिर क्यूँ करते देर??
खुशियों सूरत पे नहीं, कल जैसा वो आज।
कई सुमन अक्सर मिले, दुनिया से नाराज।।
4 comments:
बी० पी० एल० को भूलकर, आई० पी० एल० की बात।
रोटी पर आफत, उधर, पैसों की बरसात।।
बहुत खूब!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-04-2015) को "नासमझी के कारण ही किस्मत जाती फूट" (चर्चा अंक-1957) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सामयिक और सटीक दोहे
वाह क्या अंदाज़ है लाजवाब
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