न्यायालय की बात का, सब करते सम्मान।
तन्त्र यहाँ भी रुग्ण है, निर्धन का अपमान।।
राशि जमानत की नहीं, भोग रहे हैं जेल।
देखा सबने न्याय का, पैसों के संग खेल।।
मन्दिर जो इन्साफ का, रग रग भ्रष्टाचार।
दूध भला कैसे बचे, बिल्ली पहरेदार।।
अधिवक्ता जितने बडे, उतना ज्यादा दाम।
बस पैसे पर न्याय है, निर्धन के बल राम।।
दौलत के आगे सुमन, झुकने का दस्तूर।
पत्रकारिता भी झुकी, न्यायालय मजबूर।।
तन्त्र यहाँ भी रुग्ण है, निर्धन का अपमान।।
राशि जमानत की नहीं, भोग रहे हैं जेल।
देखा सबने न्याय का, पैसों के संग खेल।।
मन्दिर जो इन्साफ का, रग रग भ्रष्टाचार।
दूध भला कैसे बचे, बिल्ली पहरेदार।।
अधिवक्ता जितने बडे, उतना ज्यादा दाम।
बस पैसे पर न्याय है, निर्धन के बल राम।।
दौलत के आगे सुमन, झुकने का दस्तूर।
पत्रकारिता भी झुकी, न्यायालय मजबूर।।
1 comment:
सुन्दर ....
कृपया मेरे चिट्ठे पर भी पधारे और अपने विचार व्यक्त करें.
http://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://kahaniyadilse.blogspot.in
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