चौखट से चलके खेत में खलिहान में गज़ल
बहती है पसीने सँग ईमान में गज़ल
मस्ती में चल रही अब नंगे ही पाँव से
सूरत पे धूल है पर मुस्कान में गज़ल
परदे में बात कहने की बदला है अब चलन
सीधे ही बात करती है उन्वान में गज़ल
शबनम, शराब, प्यार की बातें भी कम हुईं
अब आईना दिखाती है मैदान में गज़ल
दुनिया के सँग बदली है, बदलेगी भी गज़ल
खोजो सुमन इन्सान को इसान में गज़ल
6 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-05-2015) को माँ की ममता; चर्चा मंच -1987 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत ही ज्यादा सुन्दर ग़ज़ल । नयी तस्वीर
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल । नयी तस्वीर
बहुत उम्दा ग़ज़ल |
उत्तर दो हे सारथि !
सीधे ही बात करती उन्वान में गज़ल...शानदार गजल
बहुत खूब
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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