Sunday, May 24, 2015

इन्सान में गज़ल

चौखट से चलके खेत में खलिहान में गज़ल
बहती है पसीने सँग ईमान में गज़ल

मस्ती में चल रही अब नंगे ही पाँव से
सूरत पे धूल है पर मुस्कान में गज़ल

परदे में बात कहने की बदला है अब चलन
सीधे ही बात करती है उन्वान में गज़ल

शबनम, शराब, प्यार की बातें भी कम हुईं
अब आईना दिखाती है मैदान में गज़ल

दुनिया के सँग बदली है, बदलेगी भी गज़ल
खोजो सुमन इन्सान को इसान में गज़ल

6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-05-2015) को माँ की ममता; चर्चा मंच -1987 पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

शिव राज शर्मा said...

बहुत ही ज्यादा सुन्दर ग़ज़ल । नयी तस्वीर

शिव राज शर्मा said...

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल । नयी तस्वीर

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत उम्दा ग़ज़ल |
उत्तर दो हे सारथि !

रश्मि शर्मा said...

सीधे ही बात करती उन्वान में गज़ल...शानदार गजल

Madan Mohan Saxena said...

बहुत खूब
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://madan-saxena.blogspot.in/
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