Tuesday, August 11, 2015

नहीं प्यार का नियम है कोई

मैं  चंदा, तू  मेरी  चाँदनी, मुझ  में  कितने दाग प्रिये
जहाँ हुई  दूरी तो जलती, हृदय विरह की आग प्रिये
दिल के अन्दर आँखों से जब, उतर गया तो ये पाया
एक  ही  चाहत तेरी, मेरी, तू  ही  सुमन - पराग प्रिये

कहने  की  भी नहीं  जरूरत, प्यार मुझे तू करती है
दुनियादारी,  लोक - लाजवश, तू  कहने से डरती है
तू  आँखों  से  बोल रही हो, जिसे सुना  मैं आँखों से
जैसे  मैं  तुझ  पे  मरता  हूँ,  तू  भी  मुझ पे मरती है

तेरी,  मेरी  एक  जरूरत,  अगर  नया  संसार  मिले
तब  शायद  दोनों जीवन को, जीने का आधार मिले
मैं और  तुम जैसे हम बनते, खुशियाँ बरसे आँगन में 
आपस में जब इक दूजे को, बिन बोले ही प्यार मिले

नहीं प्यार का नियम है कोई, कभी, कहीं हो जाता है
अलग - थलग  दुनिया से प्रेमी, यादों  में खो जाता है
यहाँ  जीत  दोनों  को  मिलती, मगर जुदाई आने पर
खो कर  गम  में  इक  दूजे  के, भूखे भी सो जाता है

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