Wednesday, August 12, 2015

घर मेरा है नाम किसी का

घर मेरा है नाम किसी का
और निकलता काम किसी का

मेरी मिहनत और पसीना
होता है आराम किसी का

कोई आकर जहर उगलता
शहर हुआ बदनाम किसी का

गद्दी पर दिखता है कोई
कसता रोज लगाम किसी का

लाखों मरते रोटी खातिर
सड़ता है बादाम किसी का

जीसस, अल्ला जब मेरे हैं
कैसे कह दूँ राम किसी का

साथी कोई कहीं गिरे ना
हाथ सुमन लो थाम किसी का

1 comment:

Unknown said...


लाखों मरते रोटी खातिर
सड़ता है बादाम किसी का

जीसस, अल्ला जब मेरे हैं
कैसे कह दूँ राम किसी का

हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार भावसंयोजन .आपको बधाई

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