रोटी पाने के लिए, जो मरता था रोज।
मरने पर चंदा हुआ, दही, मिठाई भोज।।
बेच दिया घर गांव का, किया लोग मजबूर।
सामाजिक था जीव जो, उस समाज से दूर।।
चाय बेचकर भी कई, बनते लोग महान।
लगा रहे चूना वही, अब जनता हलकान।।
लोक लुभावन घोषणा, नहीं कहीं ठहराव।
जंगल में लगता तुरत, होगा एक चुनाव।।
भौतिकता में लुट गया, घर, समाज, परिवार।
उस मिठास से दूर अब, रिश्ता भी व्यापार।।
मरने पर चंदा हुआ, दही, मिठाई भोज।।
बेच दिया घर गांव का, किया लोग मजबूर।
सामाजिक था जीव जो, उस समाज से दूर।।
चाय बेचकर भी कई, बनते लोग महान।
लगा रहे चूना वही, अब जनता हलकान।।
लोक लुभावन घोषणा, नहीं कहीं ठहराव।
जंगल में लगता तुरत, होगा एक चुनाव।।
भौतिकता में लुट गया, घर, समाज, परिवार।
उस मिठास से दूर अब, रिश्ता भी व्यापार।।
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