Monday, November 30, 2015

नहीं हँसता नहीं मैं रो सकता

तेरे  हर  गम  को बेअसर कर दूँ
अपने जज्बात की खबर कर दूँ
नहीं मुमकिन है अब जुदा होना
अपनी  नजरें  तुझे  नजर कर दूँ

          नहीं हिम्मत तुझे मैं खो सकता
          और  दूजे का  भी न हो सकता
          फिर ये कैसी तेरी शिकायत जो
          नहीं  हँसता  नहीं  मैं रो सकता

मुझको  तेरी  बहुत जरूरत है
बन्द  आँखों  में  तेरी  सूरत है
तुझे  देखूँ  खुली पलक से तो
मेरी खातिर वो शुभ मुहुरत है

          प्यार   की   चाहतें   अधूरी  है
          पास  होकर जो दिल से दूरी है
          आतीं जातीं हैं उलझनें लेकिन
          प्यार   करना  बहुत  जरूरी  है

तुझे पाने को हर जतन होगा
जहाँ तुम होगी मेरा मन होगा
आईना जब तुझे चिढ़ाने लगे
तेरे  पीछे  खड़ा  सुमन  होगा 

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-12-2015) को "कैसे उतरें पार?" (चर्चा अंक-2178) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कविता रावत said...

मुझको तेरी बहुत जरूरत है
बन्द आँखों में तेरी सूरत है
खुली पलकों से तुझे देखूँ तो
मेरी खातिर वो शुभ मुहुरत है
...बहुत सुन्दर ...

Ankur Jain said...

सुंदर रचना।

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