जीवन भर तरसे सुमन, रोटी खातिर रोज।
अब मरने पर हो रहा, दही, मिठाई भोज।।
पीछा दुश्मन छोड दे, मिला प्रभु वरदान।
दोस्त अचानक कम हुए, देख देख हैरान।।
चिन्तित नदियाँ सोचकर, खारेपन की बात।
पिय सागर से मिलन को, दौड रही दिन रात।।
आँखों में व्यक्तित्व का, छुपा हुआ हर राज।
प्रेम, घृणा, करुणा सहित, है आँखों में लाज।।
घर की संख्या घट रही, बढता रोज मकान।
मातु पिता को भेजते, वृद्धाश्रम सन्तान।।
हुआ सामना जब कभी, तन मन जाता कांप।
सुमन डरे बस तीन से, ठंढ, पुलिस या सांप।।
अब मरने पर हो रहा, दही, मिठाई भोज।।
पीछा दुश्मन छोड दे, मिला प्रभु वरदान।
दोस्त अचानक कम हुए, देख देख हैरान।।
चिन्तित नदियाँ सोचकर, खारेपन की बात।
पिय सागर से मिलन को, दौड रही दिन रात।।
आँखों में व्यक्तित्व का, छुपा हुआ हर राज।
प्रेम, घृणा, करुणा सहित, है आँखों में लाज।।
घर की संख्या घट रही, बढता रोज मकान।
मातु पिता को भेजते, वृद्धाश्रम सन्तान।।
हुआ सामना जब कभी, तन मन जाता कांप।
सुमन डरे बस तीन से, ठंढ, पुलिस या सांप।।
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