देखता हूँ चाँद लेकिन चाँदनी मिलती नहीं
यूं तो सांसें चल रहीं पर जिन्दगी मिलती नहीं
खूबसूरत फूल दफ्तर से घरों तक हैं सजे
कागजों के फूल में वो ताजगी मिलती नहीं
जिनके घर रौशन दिखे हैं बात उनसे कर जरा
सच यही कि उनके दिल में रौशनी मिलती नहीं
लोग करते हैं इबादत मजहबी तकरीर से
भीड बन्दों की है लेकिन बन्दगी मिलती नहीं
एक दूजे के सहारे जिन्दगी कटती सुमन
आपसी व्यवहार में अब सादगी मिलती नहीं
यूं तो सांसें चल रहीं पर जिन्दगी मिलती नहीं
खूबसूरत फूल दफ्तर से घरों तक हैं सजे
कागजों के फूल में वो ताजगी मिलती नहीं
जिनके घर रौशन दिखे हैं बात उनसे कर जरा
सच यही कि उनके दिल में रौशनी मिलती नहीं
लोग करते हैं इबादत मजहबी तकरीर से
भीड बन्दों की है लेकिन बन्दगी मिलती नहीं
एक दूजे के सहारे जिन्दगी कटती सुमन
आपसी व्यवहार में अब सादगी मिलती नहीं
5 comments:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04-02-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2242 में दिया जाएगा
धन्यवाद
वाह...
बन्दगी मिलती नही...छु लिया सरकार ☺
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार भावसंयोजन .आपको बधाई.
अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल
ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल
कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातों को है कह पाना बहुत मुश्किल
ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल
बहुत बढ़िया !
समाज के सत्यों को सलीके से सजाया।
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