Wednesday, February 3, 2016

जिन्दगी मिलती नहीं

देखता हूँ  चाँद लेकिन  चाँदनी मिलती नहीं
यूं तो सांसें चल रहीं पर जिन्दगी मिलती नहीं

खूबसूरत फूल दफ्तर से घरों तक हैं सजे
कागजों के फूल में वो ताजगी मिलती नहीं

जिनके घर रौशन दिखे हैं बात उनसे कर जरा
सच यही कि उनके दिल में रौशनी मिलती नहीं

लोग करते हैं इबादत मजहबी तकरीर से
भीड बन्दों की है लेकिन बन्दगी मिलती नहीं

एक दूजे के सहारे जिन्दगी कटती सुमन
आपसी व्यवहार में अब सादगी मिलती नहीं

5 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04-02-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2242 में दिया जाएगा
धन्यवाद

Rohitas Ghorela said...

वाह...

बन्दगी मिलती नही...छु लिया सरकार ☺

Unknown said...

हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार भावसंयोजन .आपको बधाई.
अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल

ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल

कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातों को है कह पाना बहुत मुश्किल

ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल

Amrita Tanmay said...

बहुत बढ़िया !

प्रवीण पाण्डेय said...

समाज के सत्यों को सलीके से सजाया।

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विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!