Wednesday, February 3, 2016

चेहरा तो बंजर लगता है

क्या अच्छा मंजर लगता है
पर रिश्तों से डर लगता है

अब मकान जो घर था अपना
सब कुछ तितर बितर लगता है

कहते हृदय प्रेम से उर्वर
चेहरा तो बंजर लगता है

तडपे घायल कौन पूछता
ऐसा आज शहर लगता है

अब विदेश में देश चमकता
भीतर से जर्जर लगता है

होठों पे मुस्कान मगर वो
अन्दर से पत्थर लगता है

सुमन स्वप्न में सुख का आना
गागर में सागर लगता है

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