रहते साथ मगर है दूरी
जीवन की कैसी मजबूरी
होठों पे मुस्कान मगर दिल
अन्दर अन्दर रोता है
अक्सर ऐसा क्यों होता है?
मुखिया, पर औकात नहीँ
सुनता कोई बात नहीं
जिम्मेवारी घर की सारी
रोज अकेले ही ढोता है
अक्सर ऐसा क्यों होता है?
सूरज के सँग चलनेवाला
सबको रोटी देनेवाला
परिजन के सँग वो किसान ही
पेट बाँधकर सोता है
अक्सर ऐसा क्यों होता है?
वे मूरख, जो प्रश्न उठाते
मुल्ला पण्डित रोज सिखाते
सबको मिलता करनी का फल
बीज सुमन जैसा बोता है
अक्सर ऐसा क्यों होता है?
जीवन की कैसी मजबूरी
होठों पे मुस्कान मगर दिल
अन्दर अन्दर रोता है
अक्सर ऐसा क्यों होता है?
मुखिया, पर औकात नहीँ
सुनता कोई बात नहीं
जिम्मेवारी घर की सारी
रोज अकेले ही ढोता है
अक्सर ऐसा क्यों होता है?
सूरज के सँग चलनेवाला
सबको रोटी देनेवाला
परिजन के सँग वो किसान ही
पेट बाँधकर सोता है
अक्सर ऐसा क्यों होता है?
वे मूरख, जो प्रश्न उठाते
मुल्ला पण्डित रोज सिखाते
सबको मिलता करनी का फल
बीज सुमन जैसा बोता है
अक्सर ऐसा क्यों होता है?
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