Saturday, April 16, 2016

बिकने को बाजार वही है

साज वही, श्रृंगार वही है
दुखियों का संसार वही है

युग बदला कहते हैं सारे
युग का भ्रष्टाचार वही है

बेचे श्रम को तन भी बिकते
बिकने को बाजार वही है

रोटी पहले फिर ये दुनिया
जीवन का आधार वही है

शासक बदले युगों युगों से
सत्ता का व्यवहार वही है

आमलोग जब हाथ मिलाते
शोषण का निस्तार वही है

सदा सुमन शोषित के संग में
आमजनों से प्यार वही है

7 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत बढ़िया.....
अनु

Asha Joglekar said...

रोटी पहले फिर ये दुनिया
जीवन का आधार वही है

शासक बदले युगों युगों से
सत्ता का व्यवहार वही है

आज के कटु सत्य को कितनी सुंदर गज़ल के रूप में पेश किया है।

Anonymous said...

श्यामल सुमन जी, बेहतरीन और शानदार कविताएं निकलती है आपकी कलम से। अध्ययन करने पर बहुत अच्छा लगा। आपके ब्लाॅग को हमने Best Hindi Blogs में लिस्टेड किया है।

nawab said...

ये ग़ज़ल कह रही है की आने वाले और बीते हुए कल में सतयुग खोजना व्यर्थ है। आपसे जितनी बात होती है एक बात होती है की आज में जीना है।

sameer said...

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sameer said...

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राम चौधरी said...

manoramsuman.blogspot.de/2016/04/blog-post_2.html

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