जीवन की शैली कभी, घर घर में था योग।
युग बदला अब देखिये, योग बना उद्योग।।
ध्यान, धारणा भूलकर, कुछ आसन पर जोर।
कसरत होता देह का, मन रहता कमजोर।।
योग जरूरत आज की, करो नियम से यार।
खुद से होगा प्यार तब, दुनिया से भी प्यार।।
जीवन का मतलब तभी, अगर रहें नीरोग।
पर मजहब से जोड़कर, व्यर्थ झगड़ते लोग।।
कुछ कारण से विश्व ने, योग किया स्वीकार।
परम्परा जो देश की, मिला सुमन विस्तार।।
युग बदला अब देखिये, योग बना उद्योग।।
ध्यान, धारणा भूलकर, कुछ आसन पर जोर।
कसरत होता देह का, मन रहता कमजोर।।
योग जरूरत आज की, करो नियम से यार।
खुद से होगा प्यार तब, दुनिया से भी प्यार।।
जीवन का मतलब तभी, अगर रहें नीरोग।
पर मजहब से जोड़कर, व्यर्थ झगड़ते लोग।।
कुछ कारण से विश्व ने, योग किया स्वीकार।
परम्परा जो देश की, मिला सुमन विस्तार।।
1 comment:
बहुत खूब ।
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