Thursday, June 23, 2016

योग बना उद्योग

जीवन की शैली कभी, घर घर में था योग।
युग बदला अब देखिये, योग बना उद्योग।।

ध्यान, धारणा भूलकर, कुछ आसन पर जोर।
कसरत होता देह का, मन रहता कमजोर।।

योग जरूरत आज की, करो नियम से यार।
खुद से होगा प्यार तब, दुनिया से भी प्यार।।

जीवन का मतलब तभी, अगर रहें नीरोग।
पर मजहब से जोड़कर, व्यर्थ झगड़ते लोग।।

कुछ कारण से विश्व ने, योग किया स्वीकार।
परम्परा जो देश की, मिला सुमन विस्तार।।

1 comment:

Jay dev said...

बहुत खूब ।

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!