प्रज्ञा नतिनी सुमन की, बरस उम्र बस चार।
पर देखा तस्वीर में, दुलहन सा श्रृंगार।।
बिटिया, नतिनी या बहन, नारी सदा अनूप।
आँखें हटती है नहीं, मोह लिया यह रूप।।
प्रज्ञा मेरी गजल को, गाती है भरपूर।
टूटे फूटे शब्द से, करती गम को दूर।।
रूप मनोहर जो यहाँ, टिकते जब तब नैन।
बिना चुहलबाजी किए, मिले न दिल को चैन।।
प्यारे से इस रूप पर, उमड़ पड़ा है प्यार।
सदा वयस्कों से अलग, बच्चों का संसार।।
पर देखा तस्वीर में, दुलहन सा श्रृंगार।।
बिटिया, नतिनी या बहन, नारी सदा अनूप।
आँखें हटती है नहीं, मोह लिया यह रूप।।
प्रज्ञा मेरी गजल को, गाती है भरपूर।
टूटे फूटे शब्द से, करती गम को दूर।।
रूप मनोहर जो यहाँ, टिकते जब तब नैन।
बिना चुहलबाजी किए, मिले न दिल को चैन।।
प्यारे से इस रूप पर, उमड़ पड़ा है प्यार।
सदा वयस्कों से अलग, बच्चों का संसार।।
1 comment:
अद्भुत...
सटीक व्याख्या
आभार
http:rajeevranjangiri.blogspot.in/
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