जनता की तकलीफ पर, करता कौन विचार।
आज न्याय सन्देह में, बिका हुआ अखबार।।
छले गए जन जन सदा, मची हुई है लूट।
बड़े लोग पाते रहे, यहाँ अधिकतम छूट।।
मुद्दों पर ना बोलना, दिल को तब आघात।
सुना रहे जबरन मगर, अपने मन की बात।।
पक्ष विपक्षी लड़ रहे, हैं आरोप अनेक।
मौसेरे भाई सभी, अन्दर अन्दर एक।।
अपनी बातों को सुमन, मनवाने पर जोर।
सांसत मे संसद अभी, केवल होता शोर।।
आज न्याय सन्देह में, बिका हुआ अखबार।।
छले गए जन जन सदा, मची हुई है लूट।
बड़े लोग पाते रहे, यहाँ अधिकतम छूट।।
मुद्दों पर ना बोलना, दिल को तब आघात।
सुना रहे जबरन मगर, अपने मन की बात।।
पक्ष विपक्षी लड़ रहे, हैं आरोप अनेक।
मौसेरे भाई सभी, अन्दर अन्दर एक।।
अपनी बातों को सुमन, मनवाने पर जोर।
सांसत मे संसद अभी, केवल होता शोर।।
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