Sunday, April 30, 2017

गया व्याकरण तेल बेचने

दण्ड  -  बैठकी   पेल  रहे   हैं
या   शब्दों  से   खेल   रहे   हैं

शब्द - भाव में दिखती कुश्ती 
पाठक  -  श्रोता  झेल  रहे  हैं

कविताओं में  क्यों  शब्दों को 
जबरन  यार   धकेल   रहे   हैं

इधर - उधर  के शब्द उड़ाकर 
अपना  ज्ञान   उड़ेल   रहे   हैं

गया   व्याकरण   तेल   बेचने
अब  वो  कहाँ   नकेल  रहे  हैं

कवि  की  श्रेणी  में  आने को
शब्दों   को  बस   ठेल  रहे  हैं

तल्ख सुमन जब सरकारों पर 
घर  तब   उनके  जेल  रहे  हैं

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