Sunday, April 30, 2017

रोने लगे जनाब!

अपने  गुनाह  को  यूँ,  धोने  लगे  जनाब
फिर से  ये आज  देखा, रोने  लगे जनाब

बातों  में  जोश  भर के, जज्बात जगाते
भाषण में  रोज आपा, खोने लगे जनाब

जम्हूरियत  में  हम सब, चुनते  नरेश को 
इस बार ये है मुमकिन, कोने लगे जनाब 

जो भी  फसल  लगाते, हम काटते  वही 
क्यों नागफनी फिर  से, बोने लगे जनाब

करना नहीं है कुछ भी, बातें मिठास की
बातों  से सिर्फ अपना, होने  लगे जनाब

बदहाल  देश  अपना,  बातें   विदेश  की 
दुनिया का बोझ सर पे, ढोने लगे जनाब 

कहते हैं फिक्र  उनको, परेशान सुमन की
सच को छुपा के चैन से, सोने लगे जनाब 

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