अपने गुनाह को यूँ, धोने लगे जनाब
देखो कि आज फिर से, रोने लगे जनाब
बातों में जोश भर के, जज्बात जगाते
ये भी सही कि आपा, खोने लगे जनाब
जो पेड़ लगाते हैं, हम काटते वही
वो नागफनी फिर से, बोने लगे जनाब
करना नहीं है कुछ भी, बातें मिठास की
यूँ बात बना अपना, होने लगे जनाब
कहते हैं फिक्र उनको, परेशान सुमन की
जाकर विदेश अक्सर, सोने लगे जनाब
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