मत रहना तू डर से चुप
और नहीं आदर से चुप
घमासान, सच का भीतर
क्यूँ रहते बाहर से चुप
दुनियावाले बोल रहे
पर अपने सोदर से चुप
उचित बोलनेवाले को
अब करते खंजर से चुप
राजनीति की दहशत को
कर प्यारे मोहर से चुप
सोच वक्त कितना मुश्किल
जब रहते अन्दर से चुप
बाहर अलख जगाने को
निकल सुमन तू घर से चुप
और नहीं आदर से चुप
घमासान, सच का भीतर
क्यूँ रहते बाहर से चुप
दुनियावाले बोल रहे
पर अपने सोदर से चुप
उचित बोलनेवाले को
अब करते खंजर से चुप
राजनीति की दहशत को
कर प्यारे मोहर से चुप
सोच वक्त कितना मुश्किल
जब रहते अन्दर से चुप
बाहर अलख जगाने को
निकल सुमन तू घर से चुप
No comments:
Post a Comment