मत रहना तू डर से चुप
और नहीं आदर से चुप
घमासान सच का भीतर
फिर क्यूँ हो बाहर से चुप
अपने सब दुनिया वाले
पर अपने सोदर से चुप
उचित समय पर जो बोले
उसे करे खंजर से चुप
राजनीति की हर दहशत
कर उसको मोहर से चुप
कितना मुश्किल होता जब
जबरन क्यूँ अन्दर से चुप
बाहर अलख जगाने को
निकल सुमन तू घर से चुप
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