आज कहाँ कानून है, कैसा हुआ समाज?
मारे जाते, जो करे, अब ऊँची आवाज।।
मानवता ही धर्म है, मानवता से प्यार।
इस खातिर मरना पड़े, मरने को तैयार।।
भले करा दो चुप मुझे, रहे कलम क्या मौन?
परिवर्तन की आग को, बुझा सका है कौन??
मानवता को रौंदकर, बाँटो नहीं अधर्म।
या मानवता से बड़ा, बता कौन सा धर्म।।
अच्छे दिन भी आ गए, यूँ भारत खुशहाल।
देख कृषक की खुदकुशी, सुमन सभी बेहाल।।
मारे जाते, जो करे, अब ऊँची आवाज।।
मानवता ही धर्म है, मानवता से प्यार।
इस खातिर मरना पड़े, मरने को तैयार।।
भले करा दो चुप मुझे, रहे कलम क्या मौन?
परिवर्तन की आग को, बुझा सका है कौन??
मानवता को रौंदकर, बाँटो नहीं अधर्म।
या मानवता से बड़ा, बता कौन सा धर्म।।
अच्छे दिन भी आ गए, यूँ भारत खुशहाल।
देख कृषक की खुदकुशी, सुमन सभी बेहाल।।
9 comments:
सुन्दर प्रस्तुति
waah bahut badhiya khoob soorat rachna
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आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'गुरुवार ' ०४ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
वाह ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीय ।
मानवता की हिमायत और उस पर मनन की भावभूमि तैयार करती उत्तम रचना. बधाई एवं शुभकामनायें.
सुन्दर सृजन
सुन्दर सृजन
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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