वो बनाकर तोड़ते, कानून आखिर क्या करें
देश में पिसते हुए, लोगों की खातिर क्या करें
आम लोगों में है गुरबत, संत, शासक मौज में
फिर भी चुनते हम इन्हें क्यों, और जाहिर क्या करें
क्या पहनना, क्या है खाना, और क्या लिखना हमें
आज कल ये फैसला, करता है शातिर क्या करें
देखकर दाढ़ी में तिनका, फिर भी हम मजबूर क्यूँ
है वही मुजरिम औ मुन्सिफ, तब ये नाजिर क्या करें
इक नयी आशा जगाने, आ गया सूरज सुमन
खुद ही देता हाजिरी नित, फिर से हाजिर क्या करें
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