बातें जितनी होती डर की
बढ़ जाती पूजा पत्थर की
जब कानून अपाहिज होता
महिमा बढ़ जाती खंजर की
जाति - धरम के सारे झगड़े
अक्सर है साजिश खद्दर की
जो खाते मिहनत की मेरी
कसमें भी खाते है सर की
जब भाई में हो बँटवारा
आँखें नम हो जातीं घर की
धन आधारित अब रिश्ते भी
हालत अब ये गाँव शहर की
मगर हथेली में रख सूरज
सुमन आस में नए पहर की
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