Tuesday, March 19, 2019

कहाँ भरे हैं घाव मुसाफ़िर

मिटा रहे सद्भाव मुसाफ़िर
आपस में टकराव मुसाफ़िर
तब ऐसी हालत बनती जब
आता एक चुनाव मुसाफ़िर

          कौन यहाँ कमजोर मुसाफ़िर
          बढ़ा खूब है शोर मुसाफ़िर
          खुलेआम कहते मंचों से
          इक दूजे को चोर मुसाफ़िर

भूखे मरते लोग मुसाफ़िर
चले कहीं पर योग मुसाफ़िर
जो खबरों में छपी लड़ाई
वह सत्ता का रोग मुसाफ़िर

          सब चलते हैं दाव मुसाफ़िर
          वोटों के भी भाव मुसाफ़िर
          हरदम छली गयी है जनता
          कहाँ भरे हैं घाव मुसाफ़िर

लोग नहीं नादान मुसाफ़िर
रखते सबका ध्यान मुसाफ़िर
जूते की माला पहनाकर
संमव है सम्मान मुसाफ़िर

          होता जहाँ अभाव मुसाफ़िर
          मुमकिन वहीं दुराव मुसाफ़िर
          सुन अपनी आवाज़ हमेशा
          उचित कौन है ठाँव मुसाफ़िर

होली के हैं रंग मुसाफ़िर
कहीं चुनावी जंग मुसाफ़िर
सत्ता खातिर इनका लड़ना
देख सुमन है दंग मुसाफ़िर 
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