Friday, April 5, 2019

बहरापन भी मुमकिन है

घायल तो दिल होते रहता, आशाएँ भी पलतीं हैं
देखो सारी नदियाँ मिलके, गंगा के सँग बहतीं हैं

टूटा एक भरोसा तो, दूजे ने झट थाम लिया
घटनाएं जो घटतीं हरदिन कुछ ना कुछ तो कहतीं हैं

खुशकिस्मत है, नहीं समझ, बस उनकी मुस्कानों से
दुनिया में बिकतीं मुस्कानें अक्सर सबको छलतीं हैं

बहरापन भी मुमकिन है, खामोशी की चीखों से
दर्द पुराने, आहें बनकर दिल से जहाँ निकलतीं हैं

अपना घर फिर बसा अगर सुमन कहीं जो ऊजड़ गया
घर को मजबूती और हिम्मत घरवालों की बढ़तीं हैं

1 comment:

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