Tuesday, April 28, 2020

मत बनियो अभिमानी

साधो! घर घर यही कहानी।
वो  अपनी  प्यारी  सी दुनिया, लगती  क्यूँ  वीरानी??
साधो ! घर घर -----

हम  सबने  कुदरत  से भरसक, अपनी की मनमानी।
जब  कुदरत  नाराज  हुई  तो,  याद  दिलाती  नानी।।
साधो ! घर घर -----

दुनिया  में  अनगिन  जीवों की, मिटती रही निशानी।
जिनसे  हम  सबने  स्वारथ  में, जी भर की बेईमानी।।
साधो ! घर घर ----

हाल  जगत  का   सुधरे   कैसे,  लगे   हुए   विज्ञानी।
सुमन कभी कुदरत के आगे, मत बनियो अभिमानी।।
साधो ! घर घर -----

3 comments:

Alaknanda Singh said...

साधो.... कबीर बन बैठा है .. इस कोरोना काल में ... वाह क्या खूब ही ल‍िखा है आपने सुमन जी

कविता रावत said...

बहुत अच्छा गीत
सवाल है क्या आगे सबक लेगा इंसान, विज्ञान प्रकृति व मानवता को बचाने की दिशा में आगे बढ़ेगा या फिर मंगल चाँद पर ही झंडे गाड़ने में लगा रहेगा

हिमांशु पाण्‍डेय said...

कभी सुमन कुदरत के आगे, बनियो मत अभिमानी।
अति सुंदर रचना

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