पद पाते यूँ संवर गए हो
मनमानी पर उतर गए हो
पेट, पीठ तक सटे लोग के
तुम चेलों संग निखर गए हो
चुप्पी क्यों जलते सवाल पर
प्यारे साहिब, किधर गए हो
खुशियों के बदले लोगों की
खुशियों को ही कुतर गए हो
आँखों में आँसू दिखलाकर
साबित करते, सुधर गए हो
बड़बोलापन, आत्म-प्रशंसा
इस कारण से बिखर गए हो
सुमन वक्त पे सभी संभलते
कुर्सी पर क्यूँ पसर गए हो?
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