Thursday, September 17, 2020

अपने सपनों को बुनते हम

जबतक जीवन तबतक उलझन।

इस उलझन से सजता आँगन।।

जबतक ------


महल अटारी या झोपड़ियाँ, तोंद कहीं तो सूखी अतड़ियाँ।

रोते देख रहा जब सबको, भटक रहा तब से मेरा मन।।

जबतक ------


अपने सपनों को बुनते हम, पूरन हो रस्ते चुनते हम।

कोशिश छोड़ी जिसने उसको, अपना मन भी लगता निर्जन।।

जबतक ------


नीति नियम पर जो चलते हैं, मिहनत करके वो पलते हैं।

इस पथ पर आजीवन चलकर, सुमन सफल होता है जीवन।।

जबतक ----

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