हमारी भाषा!
पहले प्रेम की भाषा,
सहअस्तित्व की भाषा,
और मर्यादा की भाषा।
फिर हमारी भाषा!
जब गिरने लगी ज्यादा
तो लोग कहने लगे,
क्या यही है भाषा की मर्यादा?
फिर चलन में आयी,
सपाट भाषा, स्वार्थ की भाषा,
अहंकार की भाषा,
तिरस्कार की भाषा।
और अब!
धमकी की भाषा,
गाली गलौज की भाषा,
मार पीट की भी भाषा।
जो कभी थी,
प्रेम और मर्यादा की भाषा
वो अब है आतंक की भाषा,
आखिर गिरते गिरते
कहां जाकर रुकेगी हमारी भाषा?
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