बस! वादों के मरहम बाँटे,
कहाँ झूठ पर कौवा काटे?
अब किसान भी परेशान है
मजदूरों की फँसी जान है।
मीलों पैदल चलकर जिनके, तलवे तक भी फाटे।
कहाँ झूठ पर ---------
गयी नौकरी तेल बेचने,
लगे हुए हैं रेल बेचने।
सेल, कोल सब बिकनेवाले, दिखला करके घाटे।
कहाँ झूठ पर -----
जब कोरोना बहुत जोर पर,
था साहब का ध्यान मोर पर।
खबरों के एंकर सँग वो भी, हर सवाल पर डाँटे।
कहाँ झूठ पर -------
कोशिश करते युवजन अक्सर,
रोजगारों के नहीं हैं अवसर।
सभी सुमन कोशिश करते पर, घर के गीले आटे।
कहाँ झूठ पर ------
No comments:
Post a Comment