Tuesday, November 10, 2020

कहाँ झूठ पर कौवा काटे?

बस! वादों के मरहम बाँटे, 
कहाँ झूठ पर कौवा काटे?

अब किसान भी परेशान है
मजदूरों  की  फँसी जान है।
मीलों पैदल चलकर जिनके, तलवे तक भी फाटे।
कहाँ झूठ पर ---------

गयी नौकरी तेल बेचने,
लगे  हुए  हैं  रेल बेचने।
सेल, कोल सब बिकनेवाले, दिखला करके घाटे।
कहाँ झूठ पर -----

जब  कोरोना बहुत जोर पर,
था साहब का ध्यान मोर पर।
खबरों के एंकर सँग वो भी, हर सवाल पर डाँटे।
कहाँ झूठ पर -------

कोशिश करते युवजन अक्सर,
रोजगारों  के  नहीं  हैं अवसर।
सभी सुमन कोशिश करते पर, घर के गीले आटे।
कहाँ झूठ पर ------

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