भाषण में कितनी नर्मी है
साबित सब होता फर्जी है
कैसे जीना मत समझाओ
हक सबका सबकी मर्जी है
जहर धरम का फैलाते हो
बेशक तेरी खुदगर्जी है
बस फरमान सुनाए आका
लोकतंत्र या मनमर्जी है
हर चुनाव में गद्दी खातिर
पैदा की जाती गर्मी है
क्यूँ पलटे अपनी बातों से
यार! गजब की बेशर्मी है
ज्ञान - दीप से चेतो शासक
सुमन एक कविता - कर्मी है
No comments:
Post a Comment