नेक राह पर जो संकल्पित, उसको कौन नकार गया
मर के भी अभिमन्यु जीता, लेकिन कौरव हार गया
सुनते मूरख दोस्त से अच्छा, बुद्धिमान दुश्मन यारों
बन्दर के हाथों में देखो, घातक सा हथियार गया
भरे हवा बैलून में जैसे, बस वैसे तारीफ हुई
छोटा एक चुभन में सारा, खुशियों का आधार गया
यादों में सदियों अभिमन्यु, सदा मलामत कौरव की
बोझ बना अब राज-पाट भी, और सभी का प्यार गया
इस दुनिया के कुरुक्षेत्र में, सुमन खिले जीवटता से
कैसे काँटों बीच में जीना, देकर नया विचार गया
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