Saturday, December 26, 2020

मजहब में बाँटकर अभी वो बाँटते किसान

हाथों से काम छिन गए अमन चला गया
कैसे ये किसके हाथ में वतन चला गया

मजहब में बाँटकर अभी वो बाँटते किसान
टुकड़े किए हैं इतने कि आँगन चला गया

शासक को देश माना जिस कौम ने कभी
वो बागवां भी न रहा, चमन चला गया

कैसी है बादशाहत, कुछ खोट दिख रहा
बस काम खोजने में यौवन चला गया

कैसी तुम्हारी जिद है किस बात का गुमां
समझाने में सुमन का जीवन चला गया

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