जोगिया वेष बनाया अपना, दुनिया से अनुराग।
साधो! यह कैसा वैराग?
उत जोगी जनहित की खातिर, करे साधना-मंत्र।
इत जोगी ने किया है वश में, पूरा शासन-तंत्र।
शीत लहर में जो सड़कों पर, उसके भीतर आग।।
साधो! यह कैसा वैराग?
वक्त मिला तो करो भलाई, हो सबका कल्याण।
अहंकार में किया है जो भी, जनमत स्वतः प्रमाण।
माफ किसे इतिहास किया है, तुझ पे होगा दाग।।
साधो! यह कैसा वैराग?
आमजनों को आस तभी तो, करते हैं फरियाद।
जिद छोड़ो कुछ यूँ कर सांई, लोग रखें जो याद।
चाह सुमन की उन यादों से, घर घर जले चिराग।।
साधो! यह कैसा वैराग?
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