आप भले हमें समझें दुश्मन,
पर हम ही आपके सच्चे मित्र हैं।
हां! यह भी सच है कि थोड़ा विचित्र हैं।
क्योंकि हम आपसे पूछते हैं सवाल,
आप मचाने लगते बबाल,
हमारे कथन का मजाक उड़ाते,
और करते रहते परिहास,
पर इसके लिए सांई हम नहीं,
जिम्मेवार हैं तुलसीदास।
क्योंकि वो सदियों पहले हमें सिखा गये कि -
सचिव बैद गुरु तीनि जौं, प्रिय बोलहिं भय आस।
राज, धर्म, तन तीनि कर, होइ बेगिहीं नास ||
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