Friday, May 28, 2021

ताकि बचा रहे देश

जब जब टूटती हमारी आशा,
आमजनों में बढ़ती निराशा,
फिर छूट जाती है, 
हमारी संयमित भाषा,
और हम गढ़ने लगते हैं, 
अपनी-अपनी परिभाषा,
अपने वजूद और परिवेश की,
अपने हिसाब से अपने संदेश की, 
अपने अर्जित ज्ञान के निवेश की।

तब मुमकिन है कि
लोगों के दिलों में हो, 
बेहतर सोच का ठोस आगाज,
सबके के दिलों से निकले, 
एक स्वर से एक नयी आवाज,
कि हर हाल  में हमें गढ़ना होगा, 
एक प्रेमपूर्ण उन्नत समाज,
ताकि बचा रहे हमारा देश,
बेहतर सामाजिक परिवेश,
रोज उगता रहे सूरज,
नूतन प्रत्याशा के साथ,
मर्यादित भाषा के साथ,
मिले रहें हम सबके दिल और हाथ,
अगली पीढ़ी की बेहतरी के लिए।।

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