होतीं काली रातें, अब दिन भी काला है
बिखरे न आपस में, रिश्तों से उजाला है
मरघट में भीड़ बहुत, है गाँव, शहर सूना
नहीं कहीं दिवाली पर, सबका ही दिवाला है
लाशों की ढेरों पर, व्यापार करे हैं जो
वो मुँह से छीन रहे, लोगों का निवाला है
कितनों में हिम्मत है, सच को सच कहने की
चौथे खम्भे पर भी, सरकारी ताला है
पहले दाना, पानी, बिकतीं हैं हवाएं अब
विद्यालय बन्द अभी, चालू मधुशाला है
धर्मों पर जोर यहाँ, विश्वास है लोगों में
मन्दिर, मस्जिद, गिरिजा, और बन्द शिवाला है
आते हैं, आएंगे, तुझे दर्पण दिखलाने
ये सुमन का जज्बा है, जो दिल में पाला है
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