मुझे बस फिक्र है इतनी, मेरा किरदार बच जाए
तुम्हारी सोच बस इतनी, मेरी सरकार बच जाए
तुम्हारी सोच की सीमा, सिकुड़ती जा रही खुद में
मेरी कोशिश, मुहब्बत का, यहाँ संसार बच जाए
चले थे तुम बनाने पेड़, बो कर बीज नफरत के
मेरी चाहत कि जीने का, यहाँ अधिकार बच जाए
विचारों का ये अंधापन, क्यूँ भरते हो युवाओं में
फिकर मेरी युवाओं में, सभी विस्तार बच जाए
तेरे कारण शहर सूना, हुआ आबाद मरघट क्यों
मुझे है आस काली रात का, भिनसार बच जाए
नये बदलाव भी होंगे, बता क्या रोक पाओगे
जगाने के लिए सबको, कलम हथियार बच जाए
तुम्हारी हार निश्चित है, सुमन आवाम जीतेगा
रहे इन्सानियत कायम, धरा - श्रृंगार बच जाए
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