रात दिन जलता रहा मैं, घर बसाने के लिए
अजनबी हूँ आज घर में, दिन बिताने के लिए
अंगुलियाँ तो साथ सारी, पर अलग दिखतीं सदा
अब भी कोशिश फिर उसे, मुट्ठी बनाने के लिए
प्यार अपनों को दिया जो, प्यार क्या वैसा मिला
जिन्दगी मुझको मिली क्या, बस लुटाने के लिए
आपसी सम्वाद घर में, कम से कमतर हो रहा
लोग मोबाइल में खोए, दूर जाने के लिए
भावना इक दूसरे की, कैसे समझोगे सुमन
बहते आँखों से जो आँसू, बस छुपाने के लिए
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