Friday, May 28, 2021

जबरन वो समझाते हैं

देश  नाम  पे  अपने दल की, दलदल जिन्हें सुहाते हैं
पहले  आग  लगाते  थे  जो, अब  तो  रूह जलाते हैं

सिर्फ चुनावी जीतों से क्या, लोक-भलाई है मुमकिन 
अपनी  सत्ता  हथियाने  को, तिकड़म सभी लगाते हैं

बेमानी  जनहित  की  बातें, लफ्फाजी पर जोर अभी
पूरे  न  हों   कभी   जो  शायद,  वो  वादे  दुहराते  हैं

कठिन काम होता  है  यारों, समझ राष्ट्र की आ जाए
मगर  आजकल राष्ट्रवाद  भी, जबरन वो समझाते हैं

लोक - जागरण नित्य जरूरी, पीढ़ी जो कल आएगी 
हृदय  सुमन - सा भाव संजोए, अटपट रोज सुनाते हैं

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