देश नाम पे अपने दल की, दलदल जिन्हें सुहाते हैं
पहले आग लगाते थे जो, अब तो रूह जलाते हैं
सिर्फ चुनावी जीतों से क्या, लोक-भलाई है मुमकिन
अपनी सत्ता हथियाने को, तिकड़म सभी लगाते हैं
बेमानी जनहित की बातें, लफ्फाजी पर जोर अभी
पूरे न हों कभी जो शायद, वो वादे दुहराते हैं
कठिन काम होता है यारों, समझ राष्ट्र की आ जाए
मगर आजकल राष्ट्रवाद भी, जबरन वो समझाते हैं
लोक - जागरण नित्य जरूरी, पीढ़ी जो कल आएगी
हृदय सुमन - सा भाव संजोए, अटपट रोज सुनाते हैं
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