झूमर, कजरी लिख दिया, कुछ सावन के गीत।
गाऊँ जिसके साथ मैं, मिला नहीं वो मीत।।
प्रीतम बादल से मिलन, चाह धरा की खास।
तब रोता बादल जहाँ, जगी धरा की प्यास।।
बीज अंकुरित हो रहे, देख धरा का प्यार।
हरियाली ने कर दिया, धरती का श्रृंगार।।
प्रेम सृजन का मूल है, सृजन धरा का काज।
वर्षा है रानी अगर, है वसंत ऋतुराज।।
सावन, फागुन में सुमन, पिया मिलन की आस।
सावन में बारिश हुई, फागुन है मधुमास।।
बहुत सुंदर सावनी दोहे ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार 01 अगस्त 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
ReplyDeleteसावन, फागुन में सुमन, पिया मिलन की आस।
सावन में बारिश हुई, फागुन है मधुमास।।..ऋतु श्रृंगार करते सुंदर दोहे।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबीज अंकुरित हो रहे, देख धरा का प्यार।
ReplyDeleteहरियाली ने कर दिया, धरती का श्रृंगार।।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति श्यामल जी।हार्दिक बधाई 🙏
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ...मनमोहक ।
प्रेम सृजन का मूल है, सृजन धरा का काज।
ReplyDeleteवर्षा है रानी अगर, है वसंत ऋतुराज।।
बहुत सुन्दर रचना…!य