बड़ी - बड़ी महफिल में जाना, अपनी कविता वहाँ सुनाना।
लिखा आपने जो शिद्दत से, सोच मिला क्या सही ठिकाना?
नामचीन कवियों को अक्सर, आयोजक से डरते देखा।
बड़े - बड़े मंचों पर अच्छी, कविताओं को मरते देखा।।
मुझे बुलाओगे फिर मैं तुझको, अपने शहर बुलाऊँगा।
तुम भी मेरी पीठ खुजाना, मैं तेरी खुजलाऊँगा।
व्यापारिक रस्ते से कवि को, प्राय: रोज गुजरते देखा।
बड़े-बड़े मंचों पर -----
मंचों पर हस्ती से ज्यादा, मान तुझे समुचित दूँगा।
खुद का लिफाफा हल्का करके, दान तुझे निश्चित दूँगा।
अपने स्तर से कुछ कवि को, नीचे यार उतरते देखा।
बड़े-बड़े मंचों पर -----
है समाज को अगर बचाना, फिर साहित्य बचाओ तुम।
रचा बसा तेरी प्रतिभा में, वो आदित्य बचाओ तुम।
शब्द साधना करे सुमन जो, उनको यहाँ निखरते देखा।
बड़े-बड़े मंचों पर -----
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