Tuesday, August 8, 2023

पशु-पक्षी बेहाल

दिखता सूरज क्रोध में, आँखें कितनी लाल?
आमजनों के साथ में, पशु - पक्षी बेहाल।।

प्यास बुझाने के लिए, सबके सब बेताब। 
कम दिखते हैं आजकल, कुएँ और तालाब।।

बड़े वृक्ष तक कट रहे, ले विकास का नाम। 
नए पेड़ फिर से लगें, कौन करे यह काम??

खोद - खोद घायल करें, हम धरती को रोज। 
इसी तरीके से अभी, जल की होती खोज।।

भला करे आराम कब, कृषक और मजदूर?
रोटी - पानी के लिए, वे कितने मजबूर??

राजा की हर नीति में, लोगों का कल्याण। 
मगर हकीकत में भला, जन पाएं कब त्राण??

जीव - जगत के साथ में, धरती भी बेचैन। 
झट बरसो बादल जरा, सुमन बरसते नैन।।

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